Friday 11 May 2012

गूलर के फूल..

लंच के बाद ऑफिस की बिल्डिंग के बाहर खुली हवा में एक- दो चक्कर लगाने की आदत सी हो गयी है। कैम्पस के चारों तरफ काफी पेड़ भी हैं। आज अचानक एक पेड़ के नीचे टपके फलों को देखकर कदम ठिठक गए और बचपन याद हो आया।

बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में प्रायः गाँव जाया करते थे। पोखर के पास ये बड़ा पीपल का पेड़ और आस-पास खूब सारे नीम और गूलर के पेड़ !! टीकाटीक दोपहरिया में वहाँ से हटने का जी ही नहीं करता था। उससे ज्यादा ठंडी हवा गाँव में और कहीं नसीब ही कहाँ थी? चारों तरफ जमीन पर बिखरे होते थे नीम की पकी हुयी निबौरियाँ और गूलर के फल....  और हवा में बिखरी होती थी उनकी खुशबू   सुर्ख लाल और पक कर टपके हुए गूलर के मुलायम फलों को जब दो टुकडों में चीरा जाता था तो उनमें से बीसियों छोटे-छोटे मच्छर जैसे कीड़े उड़ भागते थे। इन कीडों को उनकी इस प्राकृतिक कैद से रिहाई कराने में मजा भी बहुत आता था। जो बच गए उन्हें फूँक मार कर उड़ा दिया और मीठा गूलर सीधा मुँह के अन्दर!!! उस समय सोचते थे कि इस फल में कहीं कोई छेद नहीं, कहीं से कटा नहीं, फटा नहीं, तो आखिर इसमें इतने सारे कीड़े घुस कैसे गए ??   


गूलर यानी फिग (Fig) जिसे बहुत से लोग अंजीर के नाम से भी जानते हैं, मई जून के गर्म मौसम में फलता है। मूल रूप से अरब देशों से आई यह प्रजाति भारत के गर्म हिस्सों में पायी जाती है।  बड़ा ही विचित्र सम्बन्ध होता है वनस्पतियों और प्राणियों में । गूलर और इन कीडों (Fig Wasp) में तो यह और भी अद्भुत है  अगर एक नहीं तो दूसरा भी नहीं 

पराग कणों (pollen grains) से लदी हुयी मादा fig wasp अंडे देने के लिए गूलर के फूल में प्रवेश करती है और अंडे देने के तुरंत बाद मर जाती है  उसके द्वारा लाये गए पराग कणों से फूल निषेचित हो जाता है और नए बीज का निर्माण शुरू हो जाता है  इसके साथ उस फल के कुछ galls में wasp के लार्वा भी पनपने लगते हैं  सबसे पहले नर लार्वा विकसित होते हैं जो कि फल के अन्दर ही मादा को fertilize कर देते हैं  गूलर के फल के पक जाने पर नर wasp अपनी साथी को फल से बाहर निकलने का रास्ता बनाने के लिए एक सुरंग खोदना शुरू कर देता है  नर wasp जिसके पर नहीं होते बाहर आकर मर जाता है  मादा उस सुरंग  के रास्ते बहार आकर उड़ जाती है - अंडे देने के लिए किसी और फूल की तलाश में... जाते जाते मादा अपने साथ उस फल से पराग (pollen) साथ ले जाती है जिससे नए गूलर के बीज का भी निर्माण हो सके ।  अगर मादा बिना पराग लिए कहीं अपने अंडे दे देती है तो गूलर का पेड़ उस unfertilized फल को त्याग देता है और उसमें पल रहे लार्वा मर जाते हैं  है ना अद्भुत संगम जूलोजी और बौटानी का... !!!!


11 comments:

  1. बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने. इस लेख मैं सबसे सराहनीय बात यह है की आप कभी बोटनी और जूलोजी के छात्र नहीं रहे फिर भी इन विषयों मैं आपका ज्ञान प्रसंन्सनीय है.

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  2. very knowlegable....kaha se yeah history pata chali ki guler ke ander insect kaha se aatein hain?

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  3. very knowlegable....kaha se yeah history pata chali ki guler ke ander insect kaha se aatein hain?

    Rajni Saini

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  4. गूलर के फूल इस बात का सबूत हैं कि यह प्रकृति उतनी सामान्य नहीं है, जितनी हम समझने लगते हैं - जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं. अभी हाल में प्रसिद्ध पर्यावरण फ़िल्मकार माइक पाण्डेय ने मुझे बताया कि तितलियों की एक किस्म साइबेरियन क्रेन पक्षी की तरह हज़ारों मील की यात्रा करती है. रोचक बात यह है कि यह यात्रा एक पीढ़ी के जीवनकाल में पूरी नहीं हो पाती, इसलिए अगली २-३ पीढ़ियाँ इसे पूरा करती हैं. स्मृति का संतानों में जारी रहना अविश्वसनीय है न!

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  5. बहुत ही बढ़िया और ज्ञान वर्धक विषय है ... गुलर का तो पता था ..लेकिन अंदर क्या क्या होता है अब पता चला |.. Rakesh Gupta

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  6. Bahut Umda likha...Takle sir ki yaad gayi....
    Aur wo..beri ke pedh ka nahi likha HB inter college ke peechhe wale baagan mein thaaa.....
    Gooooooooooooooooolar ki to koi tulna hi nahi..

    -Sachin Gupta, Raleigh , NC, USA

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  7. क्या सूखी अंजीर में यासूखे गर में सूखे मरे हुए कीड़े मौज़ूद होते है यदि हां तो इसे खा कैसे सकते हैं बताएं।

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  8. क्या सूखी अंजीर में यासूखे गर में सूखे मरे हुए कीड़े मौज़ूद होते है यदि हां तो इसे खा कैसे सकते हैं बताएं।

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  9. शानदार जानकारी

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  10. यह अंजीर की प्रजाति का फल है, परंतु यह अंजीर नहीं हैं।

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