फ्रेंडशिप डे था कल !!! ना किसी फ्रेंड का मेसेज आया ना कॉल !!! .... मैंने भी नहीं किया। एक तो ये वायरल फीवर भी हद चीज होती है… हड्डियों का चूरन सा बनता लग रहा था। ऐसे में बातें करने की ज़हमत कौन करे। करे भी तो अगले से सुने क्या - "ओफ़्फो .... बीमार हो गए..... डॉक्टर को दिखाया?? दवाई खाई??? "
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं - एकाकीपन की तरफ बढ़ते जाते हैं। यह एकाकीपन आता है- क्यूँकि कभी हमारे इर्द गिर्द रहने वाले लोग जीवन की राह में हाथ छुड़ा लेते हैं ठीक वैसे ही जैसे हम छोड़ आते हैं औरों को.… आखिर सारे दोस्त ताउम्र एक ही रास्ते पर तो नहीं चल सकते ना … सबकी मंजिलें अलग -अलग हो जातीं हैं तो देर-सबेर रास्ते भी।
किसी भी रिश्ते की जान होता है - संवाद !! जब रिश्ते में संवाद खत्म हो जाए - रिश्ते मुरझा जाते है - वे अंतिम दम तक जीने कि कोशिश करते हैं ..शायद संवाद हो जाए और उस रिश्ते की कुछ पत्तियां हरी भरी हो जाएँ !!! लेकिन संवाद होता नहीं और इसी इन्तजार में ..न् जाने कब रिश्तों की जड़ें भी सुखने लगाती हैं और फिर एक दिन वो रिश्ता खत्म हो जाता है..मर जाता है ! रिशों की इस पौध पर एक परजीवी बेल उपज आती है- अहंकार की अमरबेल !!! एक बार हरे भरे रिश्ते को इसने छू लिया फिर उस रिश्ते को मुरझाने से कोई नहीं रोक सकता ..कोई भी नहीं ..एक पक्ष झुक भी गया ..फिर भी वो अहंकार रिश्ते के किसी टहनी में चुप चाप बैठा होता है ..अपने वक्त का इंतज़ार करता रहता है ...! अब देखो - फोन हाथ में है..... सबके नंबर भी है परन्तु --- "हर बार मैं ही क्यूँ कॉल लगाऊं??"
जीवन में बना या खून से मिला कैसा भी हो हर रिश्ते में कई लेयर होती हैं - सम्मान, प्यार, दोस्ती, भरोसा, ईर्ष्या, वगैरा-वगैरा । इसमें एक लेयर होती है दोस्ती की - ये लेयर जितनी मजबूत होगी रिश्ता उतना ही टिकाऊ और लंबा होगा … फिर चाहे नाम कोई भी हो- भाई-भाई, पति-पत्नी, पिता-पुत्र या फिर पडोसी, सहकर्मी, सहपाठी या बॉस ही क्यूँ ना हो.
पर् कुछ रिश्ते बहुत मजबूत होते हैं - कई साल - युग खत्म हो गए - कोई संवाद नहीं - बस एक हेलो ने जान फूंक दी.… कौन से हैं ये रिश्ते - शायद खून के रिश्ते या फिर शायद दिलों के रिश्ते !!!!
sahi hai....अहंकार की अमरबेल !!!
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