Tuesday 12 August 2014

धर्म कहाँ छुप जाता है ??

- "पाँच पांडवों के लिए पाँच तरह से बिस्तर सजाना पड़ता है लेकिन किसी ने मेरे इस दर्द को समझा ही नहीं.. क्योंकि महाभारत मेरे नज़रिए से नहीं लिखा गया था!"
- सीता का असली प्रेमी कौन था? वो रावण जिसने उसकी हां का इंतज़ार किया या वो राम जिसने उस पर अविश्वास किया?"
- कुंती ने द्रौपदी के लिए सेक्स टाइमटेबल बनाया ताकि किसी भाई को कम या ज़्यादा दिन न मिलें."
- शूर्पणखा पूछती है, "मेरी गलती बस इतनी थी कि मैंने राम से अपने प्यार का इज़हार कर दिया था? इसके लिए मुझे कुरूप बना देना इंसाफ़ है?"
- शूर्पणखा सवाल उठाती है, "अगर शादीशुदा आदमी से प्यार करना ग़लत है तो राम के पिता की तीन पत्नियां क्यों थीं?

 ये कुछ तीखे संवाद हैं बीइंग एसोसिएशन की एक रंगमंच अभिव्यक्ति "म्यूज़ियम ऑफ स्पीशीज़ इन डेंजर" के  राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के सहयोग से मंचित इस नाटक में  सीता और द्रोपदी जैसे चरित्रों के माध्यम से महिलाओं की हालत की ओर ध्यान खींचने की कोशिश की है लेखिका और निर्देशक रसिका आगाशे ने। 

ठीक ही है - धर्म की बातें तो बढ़ चढ़ कर सब कर लेते हैं पर सोचो जब रेप हो रहा होता है तब धर्म कहाँ छुप जाता है?? 

अगर समय नहीं निकाल पा रहे हैं तो पूरा नाटक यू-ट्यूब पर देखने के लिए यहां क्लिक करें-
https://www.youtube.com/watch?v=U2-f2Ryq_Dw

Monday 4 August 2014

रिश्तों की अमरबेल

फ्रेंडशिप डे था कल !!! ना किसी फ्रेंड का मेसेज आया ना कॉल !!! .... मैंने भी नहीं किया। एक तो ये वायरल फीवर भी हद चीज होती है… हड्डियों का चूरन सा बनता लग रहा था। ऐसे में बातें करने की ज़हमत कौन करे। करे भी तो अगले से सुने क्या - "ओफ़्फो .... बीमार हो गए.....  डॉक्टर को दिखाया??  दवाई खाई??? "
  
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं - एकाकीपन की तरफ बढ़ते जाते हैं। यह एकाकीपन आता है- क्यूँकि कभी हमारे इर्द गिर्द रहने वाले लोग जीवन की राह में हाथ छुड़ा लेते हैं ठीक वैसे ही जैसे हम छोड़ आते हैं औरों को.…   आखिर सारे दोस्त ताउम्र एक ही रास्ते पर तो नहीं चल सकते ना …   सबकी मंजिलें अलग -अलग हो जातीं हैं तो देर-सबेर रास्ते भी। 

किसी भी रिश्ते की जान होता है - संवाद !! जब रिश्ते में संवाद खत्म हो जाए - रिश्ते मुरझा जाते है - वे अंतिम दम तक जीने कि कोशिश करते हैं ..शायद संवाद हो जाए और उस रिश्ते की कुछ पत्तियां हरी भरी हो जाएँ !!! लेकिन संवाद होता नहीं और इसी इन्तजार में ..न् जाने कब रिश्तों की जड़ें भी सुखने लगाती हैं और फिर एक दिन वो रिश्ता खत्म हो जाता है..मर जाता है ! रिशों की इस पौध पर एक परजीवी बेल उपज आती है- अहंकार की अमरबेल !!!  एक बार हरे भरे रिश्ते को इसने छू लिया फिर उस रिश्ते को मुरझाने से कोई नहीं रोक सकता ..कोई भी नहीं ..एक पक्ष झुक भी गया ..फिर भी वो अहंकार रिश्ते के किसी टहनी में चुप चाप बैठा होता है ..अपने वक्त का इंतज़ार करता रहता है ...!  अब देखो - फोन हाथ में है..... सबके नंबर भी है परन्तु --- "हर बार मैं ही क्यूँ कॉल लगाऊं??"

जीवन में बना या खून से मिला कैसा भी हो हर रिश्ते में कई लेयर होती हैं - सम्मान, प्यार, दोस्ती, भरोसा, ईर्ष्या, वगैरा-वगैरा । इसमें एक लेयर होती है दोस्ती की - ये लेयर जितनी मजबूत होगी रिश्ता उतना ही टिकाऊ और लंबा होगा  … फिर चाहे नाम कोई भी हो- भाई-भाई, पति-पत्नी, पिता-पुत्र या फिर पडोसी, सहकर्मी, सहपाठी या बॉस ही क्यूँ ना हो.     
     
पर् कुछ रिश्ते बहुत मजबूत होते हैं - कई साल - युग खत्म हो गए - कोई संवाद नहीं - बस एक हेलो ने जान फूंक दी.… कौन से हैं ये रिश्ते - शायद खून के रिश्ते या फिर शायद दिलों के रिश्ते !!!! 

Sunday 15 June 2014

फिर कुनबा डूबा क्यूँ ?

मंहगाई  को झुठलाने के लिए सरकारें अक्सर आंकड़ों का खेल दिखातीं रही है।  जीडीपी, इनफ्लेशन रेट, ग्रोथ रेट और न जाने क्या क्या कोई समझ नहीं पा रहा है आखिर मंहगाई क्यूँ है।    

आम जनता सरकार की यह दलील मानने को तैयार नहीं  कि या तो मंहगाई है नहीं या कम हो रही है।  सरकार ने बड़े से बड़े अर्थशास्त्री, प्लानर लगा रखे है परन्तु आम जनता पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा। सरकार पर यह कहावत एकदम सटीक बैठती है--  "सारा  हिसाब ज्यूँ का त्यूं, फिर भी कुनबा डूबा क्यूँ?" 

इस कहावत के पीछे की कहानी कुछ यूँ है-

एक गणित शास्त्री ने अपने परिवार के साथ नदी पार करने से पहले नदी की गहराई नापी तथा पूरे परिवार की लम्बाई का जोड़ निकाला।  फिर इस नतीजे पर पहुंचा कि परिवार की औसत लम्बाई नदी की गहराई से ज्यादा है। तुरत-फुरत निर्णय ले वह गहरी नदी परिवार के साथ पार करने लगा परन्तु कुछ लोग डूब गए। उन्हें बचाने के चक्कर में बाकी भी बह गए। अब सवाल उठता है - सारा हिसाब ज्यूँ का त्यूं, फिर भी कुनबा डूबा क्यूँ?

Thursday 20 March 2014

रानी

आप कई ऐसी लड़कियों को जानते होंगे, जिन्होंने अपने थोड़े प्रोग्रेसिव परन्तु थोड़े सामंती (फ्यूडल) पैरेंट्स से लड़ाई लड़ी, जो अपने घरों से बाहर निकलीं, दूसरे शहरों में पढ़ने गईं, अच्छी-बुरी  नौकरी की, पैसा कमाया। सारे सामंती रिश्तों को कहा, ''आउट''। लेकिन उस लड़के को सालों-साल तक नहीं कह पाईं, ''आउट'', जिससे वो प्रेम करने लगी थीं। उनमें प्रेम पाने की ऐसी अदम्य कामना थी, जो मां-पापा और घर के तमाम प्यार करने वाले लोग पूरी नहीं कर सकते थे। वो सारी कामनाएं, जो वो लड़का पूरी करता था, लेकिन वो भी बाकी हर मामले में बहुत सामंती और कंट्रोलिंग था। लड़कियां उसे नहीं कह सकीं, ''आउट''।

हाल ही में  "क्वीन" देखी। बक़ौल रानी, उसने कभी किसी को किसी चीज के लिए ना नहीं कहा। ना माँ-बाप से और ना मंगेतर से।  उनकी हर बात मानी। लेकिन फिर एक दिन घर से निकली दुनिया देखी और तमाम सामंती रिश्तों को बोला 'आउट' ....!!!

  

सभी लड़कियों को अपनी पहली फुर्सत में  या कहूँ तो  उससे भी पहले समय निकाल कर यह फ़िल्म देख आनी चाहिए। राजौरी गार्डन से लेकर छपरा, मोतिहारी, बस्‍ती, लखीमपुर खीरी तक की सब लड़कियों में एक रानी है। सब ढूंढो अपनी-अपनी रानी को, अपनी जिंदगानी को। हिंदुस्तान के सभी मर्दों से अनुरोध है कि वो भी जायें   … सब के सब ....  बाप, भाई , हस्बैंड, बॉयफ्रेंड  ख़ास तौर पर वो फ्यूडल खाविंद जो शादी के तुरंत बाद अपनी ब्याहता का सरनेम बदलना ऐसे जरूरी समझते हैं जैसे कोई संपत्ति-जायदाद खरीदने के बाद कागज़ात पर अपने नाम की रजिस्ट्री।