इतवार का दिन, दोपहर का समय, तेज बारिश शुरू हो गयी है ... इस साल मानसून जल्दी आ गया। खाने के बाद दीवान पर लेट गया .... 4 महीने का बेटे को भी साथ में लिटा लिया ... चारों तरफ हाथ पैर फैंक रहा है .. मुझसे कुछ कहना चाहता है शायद .. सोचता हूँ की कैसे ये इतने छोटे बच्चे अपनी बातें हम तक पहुंचा देते है ... आराम से .... बिना कोई लाग-लपेट के। सामने टीवी चल रहा है ... JDU और BJP के गठबंधन टूटने की घोषणा की जा चुकी है। NDTV वाले रवीश कुमार अपने पैनल में 4-5 लोगों को लिए बैठे हैं... कौन क्या कहना चाहता है, क्या करना चाहता है- समझ नहीं आ रहा।
"पापा .. मुझे भी आपके पास सोना है .." कहते हुए बड़ा बेटा उसी दीवान पर मेरे पीछे लेट गया - एकदम चिपक कर। बच्चे निश्छल होते हैं ... थोड़े स्वार्थी भी ... बाप के प्यार पर उसका भी हक़ है ... याद आया- आज फादर्स डे है... क्या ख़ास है आज ?? बच्चों के लिए तो रोज ही फादर्स डे - मदर्स डे होता है। नींद के झोके से आने लगे हैं।
कुछ ख्यालात नींद में भी पीछा नहीं छोड़ते ... अब ये गुडिया का ख्याल अचानक कहाँ से आ गया? ... कौन गुडिया ..??? अरे वही पूर्वी दिल्ली के गाँधीनगर वाली 5 साल की गुड़िया .... दो-ढाई महीने पहले वाली घटना याद है ना… वो तो शायद 3 हफ्ते एम्स के आईसीयू में गुजार कर वापस घर चली गयी थी ना ... ठीक हो गयी ना अब तक !! ... फिर उसके बाप का भी ख्याल आ गया ... टीवी पर दिखा रहे थे उसे ... चेहरा ब्लर कर दिया था, केवल आवाज सुनाई दे रही थी ... बता रहा था कि पुलिस वाले 2 हजार रुपये दे रहे थे मामला दबाने को ...
ह्म्म्म ... मामला दब गया शायद ... अब ना कोई धरना है ना कोई प्रदर्शन। अब तो टीवी पर कोई खबर नहीं है उसकी। उसका बाप भी सोचता होगा कि अब प्रदर्शन क्यों नहीं हो रहे? क्या इसलिए कि उसकी गुड़िया अस्पताल से ज़िंदा वापस आ गयी? जब तक डाक्टर उसकी हालत क्रिटिकल बताते रहे टीवी वाले खूब झंडे-बैनर दिखाते रहे। निर्भया के केस में तो मानो तूफ़ान सा आ गया था। ......मर गयी थी ना वो !!!
तो क्या मरना जरूरी है??? पर अगर मरना जरूरी होता तो सिवनी वाली गुड़िया .... वो तो मर गयी थी। उसका नाम भी तो गुडिया ही था ना .. 4 ही साल की थी। वहाँ तो कोई प्रदर्शन नहीं हुए ..। सिवनी दूर है ना दिल्ली से .. नागपुर में ... इसलिए शायद!!!
टीवी पर एक और न्यूज़ आई- कल हुए गुडगाँव की गुड़िया के रेप के सन्दर्भ में। तब जाके समझ आया कि गुड़िया का ख्याल आया कैसे। आज सुबह ही तो अखबार में पढ़ा था, गुडगाँव की 5 साल की गुड़िया के बारे में। ये खबर तब से जहन में अटक गयी होगी शायद।
कुछ बेचैनी सी हो रही है.. दोनों बच्चे सो चुके हैं। बारिश अब काफी तेज हो गयी है। मुझे भी नींद आ रही है। बस बहुत हुआ .. अब और नहीं सोचना यह सब । हम एक गुड़िया के बारे में तो सोच सकते हैं यहाँ तो एक .. एक .. करके हो गयीं अब अनेक गुड़ियाँ !!!
पता नहीं, क्या इतनी गुडियाओं के पिता भी एसे ही चैन से सो पाते होंगे ???
Good Article.....but it is now in both the cases...not only in case of female....take the data from "Satyamav Jayte" by Aamir khaan. You will get surprsied ki Child abusement mein Male cases were more than female cases.
ReplyDeletevery good ..
ReplyDeleteBhai..1 gana yaad aata hai...
ReplyDeleteDuniya mein kitna gam hai...apna gam kitna kam hai
Auro ka gam dekha to ...apna gam mein bhool gaya...
Har cheez ki ek leher hoti hai....aur lehrane wale bahut....
Bahut achha likha hai.. yaar tum to writer ban gaye.. Good Job..
ReplyDeleteevery one of our society should come forward to eradicate such shameful crime,should stand by the sufferes n give their utmost
ReplyDeletesupport so that suh dreadful thing will not happen with any Gudiya....
राणा जी माफ़ करना,
ReplyDeleteबहुत दिन बाद आपका ब्लॉग पढ़ पाया। अच्छा लगा, अच्छा लिखते हो .......समाज के हालात समझते भी हो, बदलना भी चाहते हो .............पर छटपटाहट अन्दर तक ही सीमित रह जाती है।
अक्सर ऐसा ही होता है हम जैसे पढ़े-लिखे, नौकरीपेशा बुद्धिजीविओं के साथ। हम सोचकर ही मसले हल कर लिया करते हैं ............शायद इसीलिए कभी हम न्याय नहीं कर पाते ...........न अपने साथ, न समाज के साथ और शायद न परिवार के साथ ..............गुडिया का जिक्र एक बार फिर अन्दर कुछ हिला गया ...........एक बार फिर अपनी उदासीनता व् गैरजिम्मेदारी का एहसास ....................
मनोज नंदा .......