Sunday, 16 June 2013

एक - अनेक !!

इतवार का दिन, दोपहर का समय, तेज बारिश शुरू हो गयी है ... इस साल मानसून जल्दी आ गया। खाने के बाद दीवान पर लेट गया .... 4 महीने का बेटे को भी साथ में लिटा लिया ... चारों तरफ हाथ पैर फैंक रहा है .. मुझसे कुछ कहना चाहता है शायद .. सोचता हूँ की कैसे ये इतने छोटे बच्चे अपनी बातें हम तक पहुंचा देते है ... आराम से .... बिना कोई लाग-लपेट के। सामने टीवी चल रहा है ... JDU और BJP के गठबंधन टूटने की घोषणा की जा चुकी है। NDTV वाले रवीश कुमार अपने पैनल में  4-5 लोगों को लिए बैठे हैं... कौन क्या कहना चाहता है, क्या करना चाहता है- समझ नहीं आ रहा। 

"पापा .. मुझे भी आपके पास सोना है .." कहते हुए बड़ा बेटा उसी दीवान पर मेरे पीछे लेट गया - एकदम चिपक कर। बच्चे निश्छल होते हैं ...  थोड़े स्वार्थी भी ... बाप के प्यार पर उसका भी हक़ है ... याद आया- आज फादर्स डे है... क्या ख़ास है आज ?? बच्चों के लिए तो रोज ही फादर्स डे - मदर्स डे  होता है। नींद के झोके से आने लगे हैं।

कुछ ख्यालात नींद में भी पीछा नहीं छोड़ते ... अब ये गुडिया का ख्याल अचानक कहाँ से आ गया?  ... कौन गुडिया ..??? अरे वही पूर्वी दिल्ली के गाँधीनगर वाली 5 साल की गुड़िया .... दो-ढाई महीने पहले वाली घटना याद है ना… वो तो शायद 3 हफ्ते एम्स के आईसीयू में गुजार कर वापस घर चली गयी थी ना ... ठीक हो गयी ना अब तक !! ... फिर उसके बाप का भी ख्याल आ गया ...  टीवी पर दिखा रहे थे उसे ... चेहरा ब्लर कर दिया था, केवल आवाज सुनाई दे रही थी ... बता रहा था कि  पुलिस वाले 2 हजार रुपये दे रहे थे मामला दबाने को ... 

ह्म्म्म ... मामला दब गया शायद ... अब ना कोई धरना है ना कोई प्रदर्शन। अब तो टीवी पर कोई खबर नहीं है उसकी। उसका बाप भी सोचता होगा कि अब प्रदर्शन क्यों नहीं हो रहे? क्या इसलिए कि उसकी गुड़िया अस्पताल से ज़िंदा वापस आ गयी? जब तक डाक्टर उसकी हालत क्रिटिकल बताते रहे टीवी वाले खूब झंडे-बैनर दिखाते रहे। निर्भया के केस में तो मानो तूफ़ान सा आ गया था। ......मर गयी थी ना वो !!! 

तो क्या मरना जरूरी है??? पर अगर मरना जरूरी होता तो सिवनी वाली गुड़िया .... वो तो मर गयी थी। उसका नाम भी तो गुडिया ही था ना .. 4 ही साल की थी। वहाँ तो कोई प्रदर्शन नहीं हुए ..।  सिवनी दूर है ना दिल्ली से .. नागपुर में  ... इसलिए शायद!!!

टीवी पर एक और न्यूज़ आई- कल हुए गुडगाँव की गुड़िया के रेप के सन्दर्भ में। तब जाके समझ आया कि  गुड़िया का ख्याल आया कैसे। आज सुबह ही तो अखबार में पढ़ा था, गुडगाँव की 5 साल की गुड़िया के बारे में। ये खबर तब से जहन में अटक गयी होगी शायद। 

कुछ बेचैनी सी हो रही है.. दोनों  बच्चे सो चुके हैं। बारिश अब काफी तेज हो गयी है। मुझे भी नींद आ रही है। बस बहुत हुआ .. अब और नहीं सोचना यह सब । हम एक गुड़िया  के बारे में तो सोच सकते हैं  यहाँ तो एक .. एक .. करके हो गयीं अब अनेक गुड़ियाँ !!!

 पता नहीं, क्या इतनी गुडियाओं के पिता भी एसे ही चैन से सो पाते होंगे ???

Sunday, 19 May 2013

टेबुल फैन !!!

भनभनाती गर्मी शुरू हो गयी है। हाल ही में बाजार घूमते हुए एक चीज महसूस हुई। बिजली के सामान की दुकानों से टेबुल फैन नदारत सा दीखा। कम से कम दिल्ली के बाजारों से तो तकरीबन गायब ही है।

सालों पहले हमारे घर में भी एक होता था। सीलिंग फैन और कूलर तो कमरे में ही रह जाते थे लेकिन मानो अगर शाम के वखत बरामदे, दालान या आँगन में बैठ कर बतियाना हो तो.... !!  बस टेबुल फैन उठा लाइए और स्टूल पे रख दीजिये। रात का खाना खाते समय टीवी नहीं देखते थे उन दिनों। रसोई के सामने ही आँगन था सो वहीं पर चारपाइयाँ  डाल  दी जातीं थीं। उनके दूसरी तरफ एक तिपाई या स्टूल पर विराजमान अपना टेबुल फैन मानो सब पर नज़र रखे है… बायें से दायें ... दायें से बायें ... स्विंग !!!  CFL भी नहीं होते थे तब ...  बल्ब की पीली रोशनी ... एक ट्रांजिस्टर ... फिलिप्स का या मरफी का .. क्या फर्क पड़ता है यार ...  विविध भारती ... बिनाका संगीतमाला .. और रसोई से  एक-एक कर बन कर आती चपातियाँ ... क्या कहना !!!

फिर रात में छत पे जाके पहले तो आठ-दस बाल्टी पानी मार कर तराई कीजिये .. चारपाइयाँ  लगाइये ..  फिर वही टेबुल फैन की गर्दन पकड़ के छत पे ले जाइये .. फिर से वही-  "स्विंग" ..!!!  खुला आसमान .... चाँद सितारे ... चौकीदार की सीटी ... वही ट्रांजिस्टर .. इस बार बीबीसी की हिन्दी समाचार सेवा ... मार्क टुली .. !!! कोई कहता- समाचार सीधे लन्दन से पढ़े जा रहे हैं .. हिन्दी में  ..!!!

दोपहर में भोजन के बाद टेबुल फैन के सामने तकिया लगा के पड़ जाइये .. सब रईसी फेल है ... मस्त नशीली नींद !!! ये लो ... लाईट चली गयी ..  मुह फेर के टेबुल फैन को देखिये ... खर्र-खर्र की आवाज धीरे-धीरे कम होती हुयी .. फिर सब शांत !!!

बचपन में  टेबल फैन को लेकर एक उत्सुकता रहती थी। चार- पांच बटन ....  जब मूड  हुआ, इधर उधर देखा कोई बड़ा देख तो नहीं रहा, बस कोई बटन टीप दिए .. जब तक पंखे के ब्लेड फुलस्पीड में  न आ जायें उनको देखते रहना ...।   मन करे कि  पंखे के बीचोंबीच उंगली घुसा दें ...!!!  या फिर पेंसिल लेकर जाली के पार घूमते ब्लेड से सटा दें - खरड- खरड !!!! भागो, वरना अब पिट जाओगे ... !!! कभी कभी शराफत से बस पंखे के सामने मुह करके खड़े है- सबकी हवा रोक कर !!  फिर और नजदीक मुह ले जाकर आवाज निकालना - आ..आ..आ..आ ... !! महसूस करो अपनी आवाज की वाइब्रेशन्स !!!

कितना अदभुत समय था जब पंखे की जाली की आवाज के शोर में भी मस्त नींद आ जाती थी …