Friday, 20 July 2012

सुपर स्टार..!!

दो दिन से TV पर राजेश खन्ना छाये हुए हैं.. FM पर भी राजेश खन्ना... अखबारों में भी राजेश खन्ना... भारतवर्ष के पहले सुपर स्टार.... कैसे बने राजेश खन्ना सुपर स्टार ??
बचपन से सिनेमा देख रहे हैं... मम्मी-डैडी के साथ जाते थे....  मल्टीप्लेक्स नहीं होते थे तब.... एसी  तो छोड़ ही दो.. कूलर वाला सिनेमा हॉल भी कहीं-कहीं ही होता था.. फिल्म लगती थी तो महीनों चलती थी.... शहर भर की दीवारें पोस्टरों से भर दी जातीं थीं..  रिक्शे पर लाउडस्पीकर लगा कर प्रचार किया जाता था..  ये बड़ा सा एक पोस्टर सिनेमा हॉल की लगभग आधी इमारत को ढँके रखता था.... अन्दर लाल-काली रैक्सीन वाली सीटों की लाइन.... अन्दर की दीवारों पर ४५ अंश के कोण पर झुके सीलिंग फैन...  लोग भाग के सबसे पहले उन्हीं के पास वाली कुर्सियाँ पकड़ते थे ... बाकी शर्ट के ऊपर के २-३ बटन खोल के रूमाल से हवा मारते थे...  परदे पर राजेश खन्ना रो रहे हैं तो पब्लिक रो रही है... नाच रहे हैं तो पब्लिक सीटी- ताली मार रही है.... राजेश खन्ना की "विदाई" को कवर करने वाले आज कल के छोकरे टाइप जर्नलिस्ट कैसे अंदाजा लगा पायेंगे कि लोग एक ही फिल्म आठ-आठ बार देखते थे.... "कैसे देख लेते थे?" ...  कैसे??.. अजी बैलबौटम पहन के देखते थे .. बकरे के कान जैसे कॉलर वाली शर्ट पहन के देखते थे ... कई-कई बार देखते थे...  आखिर राजेश खन्ना कट बाल भी तो सैट कराने हैं... पूरा स्टाइल फौलो किया जाता था... लेडीस रूमाल पर राजेश खन्ना प्रिंटेड होते थे... मेरी माँ की उम्र की औरतें 'पुष्पा' हो जातीं थी जब वो कहते थे- "आई हेट टीअर्स"!!!
महान 'सुपर स्टार' को भावभीनी श्रधान्जली!!!!

Wednesday, 4 July 2012

यूपी के विधायक जी

आज के अखबारों की सुर्खियों में उत्तर प्रदेश से आयी एक खबर- मुख्यमंत्री ने एलान किया है कि राज्य के करीब ४०3 एम एल ए २० लाख रुपये तक की कीमत की अपनी पसंद की कोई भी कार सरकारी खर्चे से खरीद सकता है  मैं अखिलेश यादव के इस फैसले से सहमत हूँ  जिस व्यक्ति को आप चुन के प्रदेश की सर्वोच्च संस्था में भेज रहे हैं, जो औसतन ४-६ लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, विधानसभा में जिसके ध्वनिमत से करोडों के बजट पास होते हैं, अगर उसे पजेरो या स्कार्पियो मिल जाती है तो कौन बड़ी बात है  एक छोटा शहर, कस्बा, तहसील या दो ढाई सौ गाँवों को मिला कर बनता है एक विधायक का क्षेत्र   क्षेत्र में घूमना भी पड़ता है  सामाजिक कार्यों में आना-जाना तो लगा ही रहता है  तो क्या सरकारी रोडवेज में 'विधायकों के लिए आरक्षित' सीट पर सफ़र होगा? अगर सरकार उसे सुविधा उपलब्ध नहीं कराएगी तो वो चोरी करेगा  ईमानदारी से विधायकी करना आसान नहीं है   साधारण आदमी का तो एक ही दिन में भेजा घूम जाय  कोई सड़क पे गिट्टी डालने के टेंडर के लिए चक्कर लगा रहा है, कोई किसी लायसेंस के लिए, कोई नौकरी के लिए, तो कोई बेटी की शादी के लिए दो बोरे चीनी के लिए उधम मचाये फिर रहा है   सबको मैनेज करना पड़ता है   फिर अपनी जात वालों के सही गलत कामों पे लीपा पोती   किसी को ना कहा वो ही मुँह फुला ले  जनता ने अपना काम निकलवाना है....मुठ्ठी गरम करने को तैयार रहती है   तभी तो.. एसे लोगों को सुविधायें दे देनी चाहिए- सरकारी खजाने में सेंधमारी खुद ब खुद कम हो जायेगी