Sunday, 15 June 2014

फिर कुनबा डूबा क्यूँ ?

मंहगाई  को झुठलाने के लिए सरकारें अक्सर आंकड़ों का खेल दिखातीं रही है।  जीडीपी, इनफ्लेशन रेट, ग्रोथ रेट और न जाने क्या क्या कोई समझ नहीं पा रहा है आखिर मंहगाई क्यूँ है।    

आम जनता सरकार की यह दलील मानने को तैयार नहीं  कि या तो मंहगाई है नहीं या कम हो रही है।  सरकार ने बड़े से बड़े अर्थशास्त्री, प्लानर लगा रखे है परन्तु आम जनता पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा। सरकार पर यह कहावत एकदम सटीक बैठती है--  "सारा  हिसाब ज्यूँ का त्यूं, फिर भी कुनबा डूबा क्यूँ?" 

इस कहावत के पीछे की कहानी कुछ यूँ है-

एक गणित शास्त्री ने अपने परिवार के साथ नदी पार करने से पहले नदी की गहराई नापी तथा पूरे परिवार की लम्बाई का जोड़ निकाला।  फिर इस नतीजे पर पहुंचा कि परिवार की औसत लम्बाई नदी की गहराई से ज्यादा है। तुरत-फुरत निर्णय ले वह गहरी नदी परिवार के साथ पार करने लगा परन्तु कुछ लोग डूब गए। उन्हें बचाने के चक्कर में बाकी भी बह गए। अब सवाल उठता है - सारा हिसाब ज्यूँ का त्यूं, फिर भी कुनबा डूबा क्यूँ?