Wednesday 12 October 2011

शहंशाह या खुदा !!


इस वीकएंड पर आगरा जाने का प्रोग्राम बस अचानक से ही बन गया  बचपन से अब तक कई दफा देखे हुए बेहद भव्य ताज महल और आगरा किला आज भी मन को उद्वेलित कर देते हैं..  पता नहीं इस अजूबे के निर्माण के पीछे की असल वजह क्या है -  एक गमज़दा शौहर की अपनी महबूबा के लिये बेपनाह मोहब्बत या एक सनकी शहंशाह की खुद को कायनात की बुलंदियों पर दिखने की ठरक। उस समय की गरीब रियाया के ऊपर जजिया और ना जाने कौन -कौन से टैक्स लगा कर जमा की गयी बेशुमार दौलत के दम पर, मुमताज की मौत के एक साल बाद शाहजहां ने ताज बनवाना शुरु किया और पूरे 22 साल बाद हिन्दुस्तान के ताज में एक बेशकीमती नगीना जड़ दिया। 

दूसरा पहलू है ताज का नक्शा, जो हूबहू ‘‘कयामत के दिन‘‘ के नक्शे से मेल खाता है, चारों तरफ बाग-बगीचे और बीच में रखा खुदा का सिंहासन, फिर फव्वारों की एक लंबी कतार, और सिंहासन के ठीक सामने एक बड़ा सा चबूतरा जहां कयामत के दिन लोगों का हूजूम जमा होगा और खुदा अपने बंदों का फैसला करेंगे। इस्लामिक दीन के हिसाब से खुदा की नगरी और उसका नज़ारा बेहद खूबसूरत है, चारों ओर बाग-बगीचे और हरियाली है, और ऐसा इसलिये है क्यूकि उर्दू में घास और जन्नत के लिये एक ही शब्द प्रयोग होता है। शायद यही वजह है कि तकरीबन सभी इस्लामिक इमारतें बगीचे के बीचेंबीच बनाई जाती थीं। पर किसी भी इमारत का नक्शा हूबहू जन्नत के नक्शे से मेल नहीं खाता, सिवाय ताज महल के।

शाहजहां को ये नक्शा अपने परदादा बाबर के वक्त लिखी गई एक किताब से हासिल हुआ, और शायद तभी उसने जन्नत को जमीन पर उतारने का मन बना लिया। नक्शे में जहाँ खुदा का सिंहासन है वहा ताज महल खड़ा है और उसमें बादशाह और उनकी बेगम की कब्र है। शाहजहाँ ने खुद को खुदा के स्थान पर रखा, मानो वो ये बताना चाहता हो कि मैं खुदा का दूत नहीं बल्कि खुदा ही हूँ   इस बात का सबूत दो जगह पर मिलता है, पहला है ताज परिसर के मुख्य द्वार पर लिखा सूरा (इस्लामिक इमारतों पर चित्र बनाने की मनाही है, र्सिफ फूल-पत्तियां और कुरान की आयातें ही लिखी जा सकती हैं) जिसका अर्थ है- ‘‘खुदा की नगरी में आपका स्वागत है‘‘ और दूसरा ताज के मुख्यद्वार पर लिखा सूरा ‘‘आओ मेरी पनाह में आ जाओ''। पूरी कुरान में ये एक ही सूरा ऐसा है जहां खुदा खुद अपने बंदों से सीधे तौर पर बात कर रहें हैं, ऐसा किसी और इमारत में देखने को नहीं मिलता। खुद को खुदा साबित करने का जुनून तो कई मुगलिया शासकों में था, पर शाहजहां ने अपने जुनून को अंजाम तक पहुंचाया और जन्नत को जमीन पर उतार लाया।

ये सब जानने के बाद भी मेरे लिये ताज महल एक बेपनाह मोहब्बत की निशानी ही है, क्योंकि इसी ताज के साये में मैंने ये चंद पंक्तियां सुनी थीं - 

एक शहंशाह ने बना के हसीँ ताज महल, 
हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक !!